Nov 23, 2015

Rishtey

               
                         

                                       रिश्ते 

  आप  सभी  का    अभिनन्दन,
 ब्लॉग  जगत  का  एक  कोना   जहाँ कलम  भी अपनी दवात  भी  अपनी  और  विचार  भी  अपने। .
 चलें   आज  हम  आप और   अन्तर्मन  से  उठी  विचार '' रिश्ते '' से सम्बन्धित  चन्द  शब्द......
जी हाँ ,   तनु  शब्द ' रिश्ते ' जो  एकाकी  शब्दावली  होकर   भी अनेकानेक  रुप  मे  हमसभी  में   पैठ  बनाई   है। सरल ,सुलभ ,सुलझी  होकर भी समस्त  जन  इसकी  मायाजाल  मे उलझी  हुई.. प्रभावशाली  पूर्वक  अपना प्रभाव  कौन ,कहाँ ,किससे ...प्रश्न  मृत्युपर्यन्त  भी  जारी  रखने  मे सक्षम। मायाजाल  इस  कदर की  तमाम  कशिश और टकराहट  होते हुए भी कभी  जीने की वजह ,कभी जीने  को विवश ,कभी जीवन  को  अग्रसर  करती हुई पूरी जीवन को बदल  डालने की कुवत  रखती। इसकी मजबूत  पृष्ठभूमि बनाने  के क्रम  में अनेक  व्यवस्थाओं और  अव्यवस्थाओं  से रूबरू  होना क्योंकि  ये  अनेक भाव ,अहसास  और  सवेंदनाओ  को  आत्मसात की हुई  है।  मृगमरीचिका की  तरह  जब यह  महसुस  कि  इस  रिश्ते  में  हमने  फ़तह   हासिल  कर ली  उसी  वक्त  से खोने ,हारने की डर  सताने  लगती   या  दूर  भागती प्रतीत  होती,  वहीं  से  नयी  सवेंदनाओँ  का  प्रादुर्भाव    आरम्भ  होने  लगती। रिश्तो  को  पकड़ने  और  जकड़ने   की जद्दोज़हद  शुरु  हो  जाती ..... पुन : शून्य  से  आरम्भ     आहिस्ता  आहिस्ता  शाम  की  और  कदम  बढ़ती  जाती ...अपनी  जिंदगी  समटने ,क़रीने  से सजाने में।
 उमंग , उत्साह  का  संचारण  बना  रहे  इसलिए  कभी  पुरानी  किताबो  के बाहरी  परत  को  रंगीन  कभी  अंदरुनी  पन्नो  को  कटने ,फटने  से  बचाने के  लिए  धूल  झाड़ती  रहती ..  इनका  निर्वहण  साधना  के समान  ही  है  जिसप्रकार  साधना  की उन्नत  अवस्था  मे  विशिस्ट  कल्पनाए उठती  उसी  प्रकार  सम्बन्धों    के  साथ  भी  विचारो   और  सपनो  का वेग।
 साधना में  पल - पल  क्षय ,घटाव का  आभास होता  रिश्तो  में  भी हर  पल खोने ,विखरने  की आहट  बनी  रहती।
किसने ? कहा  कि  इसका  परिचय  सीधा  और  सरल  है। हर  किरदार  में  सफलता  ?  मुश्किल  हैं। अपने  दोनों  हाथो से समेटने  के  क्रम  में  मन ,तन ,धन  को  बिखरना  पड़ता है। शारीरिक  अस्तित्व  के समाप्ती    के बाद भी  अन्य रुप  से रिश्तेदारी  निभाने  मे  सक्षम। दर्द  और  खुशी  का  समन्वय  हि  हमारे  रिश्ते  की  पहचान ...
 

6 comments:

  1. रिश्तो को पकड़ने और जकड़ने की जद्दोज़हद शुरु हो जाती ..... पुन : शून्य से आरम्भ आहिस्ता आहिस्ता शाम की और कदम बढ़ती जाती ...अपनी जिंदगी समटने ,क़रीने से सजाने में।....लधु किन्तु भावपूर्ण लेखन , बधाई |

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  2. प्रतिक्रिया हेतु आभार,sir

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  3. दर्द और खुशी का समन्वय हि हमारे रिश्ते की पहचान ...
    ...रिश्तों को बहुत सटीक रूप से परिभाषित किया है...बहुत सुन्दर और भावपूर्ण..

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  4. बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार , sir

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  5. बेहद शानदार लेख। पम्‍मी जी, ब्‍लाग पर कमेंट करते वक्‍त नाम ईमेल के साथ अपना यूआरएल http://pammisingh.blogspot.in/ वेबसाइट वाले कॉलम में भर दिया कीजिए। इससे मैं सीधे आपके ब्‍लाग तक आसानी पहुंच सकूंगां। अभी तलाश करके पहुंचना पड़ता है।

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  6. जी,जरूर
    प्रतिक्रिया हेतू घन्यवाद

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अनकहे का रिवाज..

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